अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
अपनों की याद
दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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चार छोटी कविताएँ
१
संगति
अब मेरे बाग की
क्यारी के गुलाब के
पहले जो कभी न चुभे
वो कॉंटे चुभने लगे हैं
क्योंकि उसके आस पास
कैक्टस उगने लगे है।
२
कैक्टस
मेरी क्यारी में लगे कैक्टस
मेरे शरीर में उग आए हैं
वो कैक्टस जिन्हें तुमने बोया था
फूलो की संज्ञा देकर।
मैं
फूलो के खिलने की प्रतीक्षा में
देखती रही
दिन रात. सुबह शाम
इसके फैलते हुए कांटे
और जाने कब
स्वयं कैक्टस हो गई।
३
लक्ष्मी
दीवाली की पूजा में
फोकटराम जी ने
गुहार लगाई
"लक्ष्मी कब दुख हरोगी
लक्ष्मी कब दर्शन दोगी"
पड़ोसी की लड़की
लक्ष्मी ने तुरन्त पुकार लगाई
"जब तुम करोड़पति
बन जाओगे"
४
रोको मत
सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में
पठान की बाल पर
हेडन ने शाट लगाया
तो सारा इंडियन क्राउड चिल्लाया
रोको… … मत जाने दो
पर चौक्के और छक्के लगते रहे
क्योंकि भारतीय फील्डर्स
समझते रहे
रोको मत… … जाने दो।
१ मई २००६ |