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ष्मी
 

 

ढूँढ रही हूँ चंदन

दूर देश में
नए वेश में
पार समंदर
इस विदेश में
ढूँढ रही
अपनापन साथी

बहुत भीड़ है
नया नीड़ है
काम बहुत से
शक्ति क्षीण है
ढूँढ रही
संजीवन साथी

कठिन घड़ी है
धूप कडी है
रात अँधेरी
और बड़ी है
ढूँढ रही हूँ
चंदन साथी

१ मई २००६

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