अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
आइने का हर टुकड़ा
जिंदगी
जैसे हर बात पे
बर्फ के दायरे
शहर का मौसम
छंदमुक्त में—
अपनों की याद
कंगारुओं के देश से
ढूँढ रही हूँ चंदन
दर्द के पैबंद
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
पिता
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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ज़िंदगी छलने लगी
शाम जब ढलने लगी
कंगारूओं के देश में
पीर सी पलने लगी
कंगारूओं के देश में
याद फिर आने लगे
कुछ दोस्त अपने वतन के
आग सी जलने लगी
कंगारूओं के देश में
फिर लगा मन सोचने
कि क्या मिला क्या न मिला
कुछ कमी खलने लगी
कंगारूओं के देश में
दूर तक पसरी हुई थीं
अपनी जो परछाइयाँ
हाथ फिर मलने लगीं
कंगारूओं के देश में
वक्त पंछी सा न जाने
कब, कहाँ उड़ता गया
ज़िंदगी छलने लगी
कंगारूओं के देश में
३१ जनवरी २०११
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