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जैसे हर बात पे

जैसे हर बात पे डर लगता है
कितना मुश्किल ये सफ़र लगता है ।

लोग रोने पे सज़ा देते हैं
मुस्कराना तो ज़हर लगता है ।

राह के दीप बुझ गए सारे
कैसा वीराना शहर लगता है ।

लाके साहिल पे डुबो देता है
ये सफ़र मौत का घर लगता है ।

उसकी सूरत का क्या करें दीदार
जब ये पर्दा ही कहर लगता है ।

१४ जनवरी २०१३




 

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