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लक्ष्मी

 

आईने का हर टुकड़ा

आईने का हर टुकड़ा, आँसू बहा रहा है
भूला हुआ फ़साना फिर याद आ रहा है

बरसा नहीं था बरसों, बादल भरा हुआ था
बेबाक बारिशों में अपनी नहा रहा है

तरसे जो चाँदनी को, वो लोग भी अजब हैं
अब चाँद मिल गया तो, उनको जला रहा है

ताबूत में दबाकर, रख दी थी जो तमन्ना
किसका ख्याल उसमें हलचल मचा रहा रहा है

उसने की आशनाई, उसने की बेवफाई
फिर क्यों मुझे ज़माना कातिल बता रहा है

१४ जनवरी २०१३
 

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