अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
अपनों की याद
दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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भाई को चिट्ठी
क्या तुम्हें याद हैं
बचपन की बाते
अनगिन सौगातें
सोये-सोये दिन
और जागी-जागी रातें
क्या तुम्हें याद है
गन्ने की गंडेरी
गर्मियों की दुपहर
तेज लू में झुलसते
पत्तों की सर-सर
क्या तुम्हें याद है
अंगूर की लतरें
झरते हरसिंगार
ताश में लड़ाई
और माँ की फटकार
क्या तुम्हें याद है
जन्माष्टमी की झांकी
दशहरे की रामलीला
शायद तुम्हें याद हो
पड़ोस के गुड्डू और शीला
शायद तुम्हें याद न हों
बचपन के वो किस्से
जीवन के अभिन्न हिस्से
पर मुझे बार-बार
करते हैं बेकरार
कंगारूओं के देश में
३१ जनवरी २०११
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