अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई
रचनाओं में-
अपनों की याद
दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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दर्द के पैबंद
मखमली चादर के नीचे दर्द के पैबंद हैं
आपसी रिश्तों के पीछे भी कई अनुबंध हैं
दोस्त बन दुश्मन मिले किसका भरोसा कीजिये
मित्र अपनी साँस पर भी अब यहाँ प्रतिबन्ध हैं
तोड़ औरों के घरौंदे घर बसा बैठे हैं लोग
फिर शिकायत कर रहे क्यों टूटते सम्बन्ध हैं
दूसरों पर पाँव रखकर चढ़ रहे हैं सीढ़ियाँ
और कहते हैं उसूलों के बहुत पाबन्द हैं
दिन ज़रा अच्छे हुए तो आसमां छूने लगे
अब गरीबों के लिए घरबार उनके बंद हैं
२८ नवंबर २०११
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