अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
अपनों की याद
दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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बदलाव
पिंजरे के तोते
'बजी' बन गए
बाँसुरी के सुर सज गए
'डिजरी डू' में
गुलमोहर सिमट गए
बॉटलब्रश की झाड़ियों में
और जाने कब
कैद हो गए
दीवाली व ईद
सप्ताहांत में
जाने कैसे बदल गई
वक्त की परिभाषा
घड़ी की सुई की
टिक टिक से बँध गई
रिश्तों की आशा
दिल्ली का इंडिया गेट
बन गया डार्लिंग हार्बर
गंगा और यमुना
बनने लगीं
हाक्सबरी और यारा रीवर
बदलाव की इस प्रक्रिया में
बहुत कुछ बदला
पर ऐसा भी बहुत है
जो बिल्कुल नहीं बदला
नहीं बदली लोगों की आस्था
न बदला मन का विश्वास
न बदला पूजा का रूप
न बदला मंदिर का प्रसाद
कंगारूओं के देश में
बार बार मन ढूंढता रहा
गल्ती पर पिता की डांट
चलते समय मां का आर्शीवाद
घर की मसालेदार चाय
और अचार का स्वाद
इस बदलती जीवन धारा में
सवाल नहीं है
कुछ पाने या खोने का
सवाल नहीं है
कुछ होने या न होने का
सवाल बदलाव से
न हारने का है
सवाल बदलाव को
स्वीकारने का है।
१ मई २००६
'बजीर्' – आस्ट्रेलिया का पक्षी
'डिजरी डू' – आस्ट्रेलिया का संगीत वाद्य
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