अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
अपनों की याद
दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
|
|
बचपन के दिन
याद आते हैं बचपन के दिन
तड़पाते हैं बचपन के दिन
वो दिन दादा के गाँव के
वो दिन पीपल की छाँव के
शैतानी के साज़िश के दिन
गर्मी के दिन बारिश के दिन
परियों के भूतों के क़िस्से
चोरी के आमों के हिस्से
वो दिन नुक्कड़ के नाई के
वो दिन कल्लू हलवाई के
याद आते हैं……
वो दिन चूरन के इमली के
वो दिन फूलों के तितली के
वो दिन सावन के झूलों के
वो दिन अनजानी भूलों के
चंदा के दिन तारों के दिन
खेलों के गुब्बारों के दिन
याद आते हैं बचपन के दिन
तड़पाते हैं बचपन के दिन
वो दिन अलमस्त नज़ारों के
वो दिन तीजों त्यौहारों के
हैं याद दशहरे के मेले
वो चाट पकौड़ी के ठेले
वो रावण का पुतला जलना
वो राम का सीता से मिलना
जगमग वो दिन दीवली के
आतिशबाज़ी मतवाली के
वो दिन जो खील बताशों के
वो दिन जो खेल तमाशों के
याद आते हैं बचपन के दिन
तड़पाते हैं बचपन के दिन
वो दिन गुझिया के कॉंजी के
वो दिन टेसू के झॉंझी के
वो दिन कटटी के साझी के
वो दिन ताशों की बाज़ी के
वो दिन होली के रंगों के
वो आपस के हुड़दंगों के
वो दिन मीठी ठंडाई के
नमकीन के और मिठाई के
याद आते हैं बचपन के दिन
तड़पाते हैं बचपन के दिन
वो दिन अम्मा के खाने के
बाबू के लाड़ लड़ाने के
वो दिन गुडडे के गुड़िया के
वो दिन सपनों की दुनिया के
याद आते हैं
३१ जनवरी २०११
|