पाँच छोटी
कविताएँ
धर्म
धर्म- एक औषधि
जिसकी अवहेलना
शरीर बिना प्राण
सही सेवन
उचित उपचार
अत्यधिक उपयोग
ज़हरीली बीमारी !!
पंख
लोग सोचते हैं कि
सच के पंख कुतर दो तो उड़ानें,
नीची होंगी
और झूठ को पंख लगा दो तो उड़ानें, ऊँची होंगी
ये दोनों अनर्गल बातें हैं, बस बतकही में आती हैंI
तथ्य तो ये है कि
उड़ानें कैसी, कहीं और कभी भी क्यों न हो ?
भौतिक आकाश में उड़ने के लिये,
दोनों परवाज़ों को पंख की ज़रुरत
कभी नहीं पड़ती !
सहनशीलता
अपनी उपलब्धिओं के
बखान के दौरान
तुमने कहा कि -
'तुम मुझसे बेहतर हो'
मैंने इसे 'अन्यथा' नहीं लिया
मैं जनता था कि तुम्हारा अहंकार
तुम्हारे विवेक पर हावी रहता है
और मैं संजीदगी से
सह लेता हूँ इसे - क्योंकि
मेरी सहनशीलता
तुम्हारे अहंकार पर
अंततः बहुत भारी
होती है !
संघर्ष
बुरे वक़्त में
अटल रहने की क्षमता
और
विपत्ति के सैलाब को
रोकने के साहस को
मैं दुःख नहीं मानता !
यह मेरा जुझारूपन है
जिसे मैं
संघर्ष का नाम देता हूँ !!
भोग
भोग !
शब्द के मायने समय के साथ-साथ
बदलते जा रहें हैं
पहले इसका प्रयोग
भगवान के प्रसाद- प्राप्ति
के रूप में होता था
और अब
समाज के उपेक्षित वर्ग को
दर्शाने में !
२५ फरवरी २०१३
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