वैमनस्य
तेरे साथ
मेरे विचार मेल नहीं खाते थे
मैं जानता था
सीख लेता
पर क्यों तुमने
मेल बढ़ाना ही छोड़ दिया?
ऊँच-नीच की खाई बतला कर
मरी हस्ती के करीब वाली
रफ़ाकत की सड़क पर
चलना ही छोड़ दिया?
बैर तुमने बढ़ाए
शत्रुता तुमने की
और दोष मुझ पर मढ़ दिया!
ग़ैरों को बड़ा बतला कर
मुझे छोटा दिखा कर
हीन-भावना जड़ दिया?
वरना सीधी-सादी हस्ती में
क्या नहीं था?
जग जीत लेने का मुझमें
क्या जज़्बा नहीं था??
'खोने' का मुखौटा लेकर
अपना-सा चौखटा लेकर
वजूद ढूँढ़ता रहा!
वरना मरी आँखों में
कभी अश्क नहीं था
मुझमें वैमनस्य नहीं था!!
१८ फरवरी २००८
|