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खाई

अपने वजूद की मिट्टी खोदकर
समतल आधार में सेंध लगाकर
धरती ने उगाई है
ऊँचाई का पेड़
जिसकी पीठ पर बैठकर
विस्मय से नीचे झाँककर
अपनी छाती पर बसी दुनिया को
छोटी कह सके।

पर वास्तविकता इस परिधि से अलग है
क्योंकि इसी प्रयास ने
पहाड़ की चोटी पर बैठे
और विवेक को निरंतर नकारते
इसके अहंकार को-
समन्वय की मिट्टी हट जाने से
और एकाकीपन की खाई खुद जाने से
विचार के व्यापक धरती को
ऊसर सपाट चोटी से
बहुत दूर कर दिया है।

१८ फरवरी २००८

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