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यादें
यादें बेवफ़ाई देती है
भूलूँ, तो दिखाई देती है
मैं तो रोक लूँ, गम को बाहर
कुछ अन्दर सुनायी देती है
चढ़ना चाहता, था मैं ऊपर
दुनिया है, जो खाई देती है
करना कौन चाहेगा मिहनत
जब धोक़ा क़माई देती है
थी अभिशाप, अब यही ग़ुरबत
घर -घर में बुराई देती है
डाका जगहँसाई था पहले
अब दुनिया बधाई देती है
आँखें मूँद लूँ,जब भी अपनी
वह आँखें दिखाई देती है
१७ जनवरी २०११ |