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कहने सुनने की आदत

कहने- सुनने की आदत को, पहले आँखें खोल के देखा
इंसानी बातों का जज़्बा, दिल भी ख़ूब टटोल के देखा

उम्दा नस्ल है इंसानों की, बोली ऊँची होती होगी
इक्का -
दुक्का बाज़ारों में, ऊँची बोली बोल के देखा

शायद पानी मीठा होगा, सागर नदियों से बनता है
ऊपर-नीचे खारा पानी, सागर को हिचकोल के देखा

कुछ लोगों की फ़ितरत ऐसी, आँख सहित होते है अंधे
आँखें उनके काम न आई, जब भी चिलमन खोल के देखा

बिन धरती पहचान नहीं है, बिन पैरों के मान नहीं है
बिन पेंदी के लोटे जैसा, आगे - पीछे डोल के देखा

इंसानों के दिल -दर्पण में, पसघा भर भी तोल ना देखा
नीयत, शिद्दत, प्यार- मुहब्बत, बटख़ारो से तोल के देखा

तीता मुँह और कड़वी बातें, चाहे उम्दा बात कही हो
बात रही वह बिल्कुल फीकी, कान में मिश्री घोल के देखा

जिन लोगों की उलटी बुद्धि, सीधी बातें क्या समझेंगे
चुप रहकर, सब बूझ समझकर, हमने टाल-मटोल के देखा

१७ जनवरी २०११

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