ललक
ज़िंदगी एक दौड़ है-
बैसाखी पर चलने की लाचारी नहीं
न हीं घुटनों के बल
चलने का नाम है-
जिसे वक़्त अपने डंडों से हाँकता रहे
और प्रतिस्पर्धा
दौड़ की चाहत लिए
पिछड़ जाए।
तेज़ चलना आदत तो भली है
पर उसमें कभी धीमी रफ़्तार की
नकेल भी लगाइए।
ताकि
पिछड़ते पल के साथ
वर्त्तमान की लय बरकरार रहे।
बावजूद इसके
लोग जीत जाते हैं,
क्योंकि
हारनेवालों में
जीतने की ललक नहीं होती!
५ अप्रैल २०१० |