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ज़िंदगी मुश्किल मेरी
जिन्दगी मुश्किल मेरी थी, आप सहल कहते हैं
दोस्तों की ना -नुकुर थी, आप पहल कहते हैं
मैं नहीं कहता कभी कुछ, आँख करती है बयाँ
बेज़ुबां की तर्ज़ुबानी , आप ग़ज़ल कहते हैं
खेत को मिलता नहीं था, बीज, पानी, मेघ हल
ज़ुल्म - हाहाकार उपजा, आप फसल कहते हैं
खून से लथफथ, हजारों आदमी की लाश पर
वह खडा है मकबरा सा, आप महल कहते हैं
सूख कर पत्थर हुआ है, खुशबुएँ घटती गयी
कागजों पे रह गया है, आप कँवल कहते हैं
जिन्दगी बरसात बन कर,शाम-सुबह, आये दिन
छू गयी है पाँव केवल, आप गुसल कहते हैं
मुख्तसर होती गयी है, खूबियो की फेहरिस्त
खामियाँ फल दे रहा है, आप फज़ल कहते हैं
ज़ुल्म से डरता नहीं हूँ, आदतों में रख लिया
वक़्त की सरगोशिओं को, आप दखल कहते हैं
चोर है रहबर बना अब, झूट कहना है सही
देश का फरमान है यह, आप चुहल कहते हैं
मुश्किलें परवाज़ बनकर, हौसलों के अंजुमन
जिंदगी की दौड़ मुश्किल, आप सहल कहते हैं
१७ जनवरी २०११ |