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एहसान
ज़िंदगी
तुमसे कोई शिक़ायत नहीं!
एहसानमंद हूँ
क्योंकि,
कम से कम
मरने तो नहीं दिया तुमने!
जिलाए ही रखा-
साँसों में शराब की तरह,
आँखों में ख़्वाब की तरह,
ज़ख़्मों में नासूर की तरह,
दुनिया में दस्तूर की तरह।
और
हर अवस्था में
कुछ न कुछ
मिला ही तो है-
बालपन में अवसाद
जवानी में संताप
बुढ़ापे में असंतोष
और
जीने के लिए चाहिए ही क्या!
५ अप्रैल २०१०
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