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१२. ८. २०१३

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देवर्ष शाह

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यही धरती यही धरती

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भरत-की गाथा, कहानी
आर्य-जीवन की
हाँ यही धरती, यही धरती !

प्रकृति में उमड़ा हुआ उल्लास
मन मोहे
नद-महानद सरि-सरोवर
माधुरी सोहे
रुक्षता में सरसता-की
लहर-सी झरती !

नित करोड़ों आस्थाएँ कर
रहीं पोषण
शब्द का अध्यात्म तीनों
लोक का भूषण
दृश्य में अदृश्य-का
दर्शन मिली करती !

ठगिनी है मायाविनी माया
सभी कहते
सत न डिगने दें भले ही
वंचना सहते
विश्व में बन्धुत्व के
रस-रंग ही भरती !

राजकुल से राजनेता तक
बदल देखे
स्वर्णयुग क्या अकालों के
छद्म-छल देखे
सर्वहितकारी व्यवस्था
को रही वरती !!!

--अश्विनी कुमार विष्णु

इस सप्ताह
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर

गीतों में-

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यही धरती यही धरती

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अहंकार सबने पाले हैं

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उन्हें शत शत नमन मेरा

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उम्मीदें थीं

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कुछ लोगों की भली चलाई

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कैसी आजादी

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कौन कह रहा

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गाएँ गौरव-गान देश का

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जय भारत माँ

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तब आई तिथि पंद्रह अगस्त

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देश रसोई

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देश हमारा पालक

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पंछी जागे गाएँ प्रभाती

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भारत माता अभी हमें कुछ...

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मातृभू कैसे करें तुझको नमन

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मेरा भारत

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मेरे प्यारे देश

अंजुमन में-

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आगे निरंतर

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आज हैं आज़ाद हम

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खुश होता है दिल

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चुप नहीं बैठेंगे हम

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साफ लिख दी काल ने

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सीमा पर लगती घातों से

छंदमुक्त में-

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आजादी का जश्न

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एक बच्चे का पंद्रह अगस्त

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परिवर्तन की आधारशिला

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लाल किला

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सरहद पर

छंदों में-

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क्या खौफ दरिंदों से (माहिया)

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कैसी आजादी है (माहिया)

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बँटवारे की पीर (दोहे)

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भारत को कहते थे (माहिया)

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माँ जन्मभूमि सब (माहिया)

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लाज तिरंगे की (आल्हा)

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शुभ दिन आया (कुंडलिया)

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   

 

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