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देश हित की जिन्दगी को सब जियो आगे निरन्तर,
मात कर सब संकटों को मिल बढ़ो आगे निरन्तर।
हाथ में थामें तिरंगा नित बढ़ें आगे कदम,
लक्ष्य सम्मुख है विजय का बढ़ चलो आगे निरन्तर।
खींच प्रत्यंचा धनुष की राम ने सागर किनारे,
शीश सिंधू का झुकाया मत झुको आगे निरन्तर।
देश के सब दुश्मनों को खाक में ही गाड़ दो तुम,
हाथ में तलवार थामे जय कहो आगे निरन्तर।
घूँट यों अपमान के पीते रहे अब तक बहुत हम,
दासता के बाँध को तोड़ो बहो आगे निरन्तर।
दिव्य गीता ज्ञान को अपना लिया जब जिन्दगी में,
मोह बंधन त्याग सब सेवा करो आगे निरन्तर।
हिम नदी सम उच्च शिखरों पर डटे हैं वीर सैनिक।
सींचकर गंगा नदी को तुम गलो आगे निरन्तर।
-सुरेन्द्रपाल वैद्य
१२ अगस्त २०१३
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