एक बच्चा झुग्गी झोंपड़ी का रहने वाला
मन का एकदम सच्चा और भोला-भाला
उस रात वह बहुत खुश बड़ा ही मस्त था
क्योंकि दूसरे दिन पन्द्रह अगस्त था
सोच रहा था अबकी बार
वो भी तिरंगा लहरायेगा
पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मनाता है
इस बार वो भी पावन पर्व मनायेगा
किन्तु गरीब बच्चा झण्डा कैसे खरीदेगा
सोचा किया बड़ी देर तक
अचानक उसे कुछ सूझा
और वो
गया कचरे के ढेर तक
कचरे में से हरा सफ़ेद तथा केसरिया रंग के
तीन कपडे उठा लाया
उन्हें साफ़ धोया
धोकर सुखाया
झण्डे के बीच में चक्र बनाया
सुखद कल्पनाओं में खो गया
झण्डेको सिरहाने लगाके सो गया
सुबह जाग़ा तो अभागा बड़ा दुखी-परेशान था
उसका चेहरा उतर गया था
ऱात कोई चूहा
उसका झण्डा कुतर गया था
उस दिन से उसके दिमाग में
एक अजब सा फितूर चढ़ा रहता है
आये दिन वो चूहों के पीछे पडा रहता है
चूहे को देखते ही वो दौड़ता है
अब वो
किसी भी
चूहे को ज़िंदा नहीं छोड़ता है
और हम को पता है
कि देश को आये दिन
कैसे कैसे चूहे कुतर रहे हैं
हम सब लाचार हैं किस कदर
कि इनका कुछ भी नहीं कर रहे हैं
--लक्ष्मीदत्त तरुण
१२ अगस्त २०१३
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