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मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
हैं अधूरे ही पड़े तेरे सपन!
द्वार पर तेरे जले कितने दिए,
लाल थे तेरे, जिये तेरे लिए,
बुझ गये दे भी न पाये हम कफ़न!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
नीर भोजन चीर तेरे भोगते,
गर्भ में तेरे खजाने खोजते,
कर चले हम स्वार्थ में ममता दफ़न!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
हम पले जिस छत्र से आँचल तले,
आज उसमे छिद्र कितने हो चले,
देख कर भी मूँद लेते हम नयन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
एक माटी का पतन-उत्थान क्या,
विश्व में उसकी भला पहचान क्या,
अस्मिता जिसकी कुचालों के रहन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
घूँट पी अपमान का जीना वृथा,
आन पर मरना भला है अन्यथा,
हो सृजन संकल्प या नीरव हवन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
-ओम नीरव
१२ अगस्त २०१३
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