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भारत माता, अभी हमें कुछ और सँवरना है
मुक्त गगन में अभी तिरंगा और फहरना है
राहों में कंटक अपने
सब बैरी डालेंगे
पर हम अपने सब घावों को
खुद धो डालेंगे
तरुणाई के इस आलम में नहीं बिखरना है
सोने सा तप तप कर हमको और निखरना है
धैर्य हमारा अब मत परखें
कह दो यह जाकर
पिछली सारी घटनाएँ जो
आये बिसराकर
पाँव रखें यदि छाती पर तो वहीं कुचलना है
भारत को अब मानचित्र पर और उभरना है
गालों पर बच्चों के फिर से
लाली लौटेगी
रामराज के जैसी फिर
खुशहाली लौटेगी
स्वार्थ त्याग कर मातृभूमि की सेवा करना है
बापू के सपनों को अब तो पूरा करना है
राणा प्रताप सिंह
१२ अगस्त २०१३
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