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१
क्या खौफ़ दरिंदों से
हमको तो डर है
घर के जयचंदों से
२
क्या फूल यहाँ महकें
ज़हर हवाओं में
पंछी कैसे चहकें
३
ये रात बहुत काली
है कितना गाफिल
इस बगिया का माली।
४
है चाह सवेरे की
खींचो तो मिल के
ये पाल अँधेरे की
५
रुख मोड़ लिया हमने
कल की बातों को
कल छोड़ दिया हमने ।
६
धोखा हर बार करे
वैरी है कायर
छुप-छुप कर वार करे
७
कैसी ये लाचारी
जब इक वीर यहाँ
है, सौ-सौ पर भारी
८
भूले बलिदानों को
वीर शहीदों के
समझो अरमानों को
९
इक राह दिखाई थी
खूँ देकर अपना
बगिया सरसाई थी
१०
यूँ पर्व मनाते हो
दीप जलाने की
बस रस्म निभाते हो
ज्योत्सना शर्मा
१२ अगस्त २०१३
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