परिवर्तन की एक नई आधारशिला रखना है।
न्याय मिले बस इसीलिए आकाश हिला रखना है।
द्रवित हृदय में मधुमय इक गु़लजार खिला रखना है।
हर दम संकट संघर्षों में
हाथ मिला रखना है।
दो लफ्जों में उत्तर ढूँढें हो स्वतंत्र क्या पाया?
हर कूचे औ' गली गली में क्यों सन्नाटा छाया?
जात पाँत का भेद मिटा क्या राम राज्य है आया ?
रख कर मुँह को बंद जी रहे
क्यों आतंकी साया ?
तेरी मेरी सब की है अक्षुण्ण धरोहर आजादी।
रहे न हम गर जागरूक खो सकती है ये आजादी।
महका दो अपनी धरती फिर हरित क्रांति करना है ।
हार नहीं हर हाल प्रकृति को
अब सहेज रखना है ।
-आकुल
१२ अगस्त २०१३
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