अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कल्पना रामानी की रचनाएँ-

नये कुंडलिया में-
गर्मी करे विहार

कुंडलिया में-
नारी अब तो उड़ चली

अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
कोमल फूलों जैसे रिश्ते
खुदा से खुशी की लहर
खुशबू से महकाओ मन
खोलो मन के द्वार
गीत मैं रचती रहूँगी
ज़रा सा मुस्कुराइये
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
पसीने से जब जब
बंजर जमीं पे बाग
भू का तन प्यासा
मन पतंगों संग
यादें
वतन को जान हम जानें

गीतों में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई

काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ

जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
धूप सखी
बेटी तुम

भ्रमण पथ
ये सीढ़ियाँ

दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु

 

गर्मी करे विहार

गर्मी में देखो सखी, तरणताल का जोश।
लोहा लेने धूप से, खोला राहत-कोश।
खोला राहत-कोश, जानता है यह ज्ञानी
जल निगले जब काल, उसे बनना है दानी।
कितना सखी उदार, ताल यह सेवाकर्मी
बनकर शीत फुहार, हर रहा जन की गर्मी।

जब-जब आकर भूमि पर, गर्मी करे विहार।
मित्रों तब उसका करें, मनचाहा सत्कार।
मनचाहा सत्कार, सुराही जल भर लाएँ
फल सलाद के साथ, दही का पात्र सजाएँ।
जो माँगे तर खाद्य, परोसें सारे जी भर
गर्मी करे विहार, भूमि पर जब-जब आकर।

उद्यत होता सूर्य जब, तड़पाने मन-प्राण।
न्यौता देते तब हमें, सुबह-शाम उद्यान।
सुबह-शाम उद्यान, सौंपकर खुशबू-छाया
सहज सुखाते स्वेद, अजब कुदरत की माया।
फूलों का परिवार, हमारा सौख्य सँजोता
तड़पाने मन-प्राण, सूर्य जब उद्यत होता।

दिनकर के सखि देखकर, अतिशय गरम मिजाज।
हमें बुलाते दूर से, दे पहाड़ आवाज़।
दे पहाड़ आवाज़, प्रकृति का लुत्फ उठाने
चल पड़ते हैं पाँव, भ्रमण पर इसी बहाने।
पर्वत शीतल-स्नेह हमें देते तब जी भर
जब-जब गरम-मिजाज सखी होता है दिनकर।

ऋतु परिवर्तन अटल हैं, शीत बढ़े या ताप।
जैसे भी बदलाव हों, बदल जाइए आप।
बदल जाइए आप, अगर हो तपता मौसम
पानी तो लें खूब, और भोजन कर लें कम।
कहनी इतनी बात, बना लें वैसा ही मन
शीत बढ़े या ताप, अटल हैं ऋतु परिवर्तन।

१ मई २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter