अनुभूति में
कल्पना रामानी
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ
अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें
नई रचनाओं में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई
जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम
भ्रमण पथ
दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु
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नारी जहाँ सताई जाए
बहुत विश्व में अब भी कोने
नारी जहाँ सताई जाए
जिसने अक्षर कभी पढे ना
कविता उसको
कौन सुनाए
मिलते नहीं पेट भर दाने
पिसती रहती दानों जैसी
चीखें रुदन दबा अंतर में
पिटती वो हैवानों जैसी
स्वजनों को सींचे अमृत से
स्वयं हलाहल
प्याला पाए
व्यथा कथा यह उस नारी की
जिस पर नज़र न कोई जाती
समानता के दावे झूठे
नर होते नारी पर हावी
कभी प्यार के बोल सुने ना
गीत छंद के
कैसे गाए
जिन कदमों ने छुआ गगन को
कभी न उस कोने तक पहुँचे
जहाँ बनी अभिषाप अशिक्षा
नरपशु लक्ष्मण रेखा खींचे
कहाँ न्याय के मंदिर उसके?
कौन उसे वो
राह दिखाए
उसका दिवस कभी नहिं आता
अंकित बस पन्नों पर गाथा
देता है इतिहास गवाही
लिखने वाला ही यश पाता
रचना तेरी देख रचयिता
तिल तिल अपना
रूप गँवाए
९ अप्रैल २०१२
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