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अनुभूति में कल्पना रामानी की रचनाएँ-

नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ

अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें

गीतों में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई

जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम

भ्रमण पथ

दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु

 

चलो नवगीत गाएँ

गर्दिशों के भूलकर शिकवे गिले,
फिर उमंगों के चलो नवगीत गाएँ।

प्रकृति आती
रोज़ नव शृंगार कर।
रूप अनुपम, रंग उजले
गोद भर।

जो हमारे हिय छुपा है चित्रकार,
भाव की ले तूलिका उसको जगाएँ।

झोलियाँ भर
ख़ुशबुएँ लाती हवा।
मखमली जाजम बिछा
जाती घटा।

ख़्वाहिशों के, बाग से चुनकर सुमन,
शेष शूलों की चलो होली जलाएँ।

नित्य खबरें
क्यों सुनें खूँ से भरी।
क्यों न उनकी काट दें
उगती कड़ी।

लेखनी ले हाथ में नव क्रांति की,
हर खबर को खुशनुमा मिलकर बनाएँ।

देख दुख, क्यों
हों दुखी, संसार का।
पृष्ठ कर दें बंद क्यों ना
हार का।

खोजकर राहें नवल निस्तार की,
जीत की अनुपम, नई दुनिया बसाएँ।

३ मार्च २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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