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अनुभूति में कल्पना रामानी की रचनाएँ-

नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ

अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें

नई रचनाओं में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई

जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम

भ्रमण पथ

दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु

 

शीत ऋतु


शीतल ऋतु आई सखी, पहन नए परिधान,
चलो दुशाला ओढ़कर, करें धूप का स्नान।


एक चटाई धूप की, डलिया भरकर बेर,
जन-मन को हर्षा गया, मौसम का यह फेर।


फटी बिवाई पाँव में, करे हवा हैरान,
नए रंग दिखला रहा, शीत नया मेहमान।


शीत प्रसाधन चल पड़े, भरने लगे बजार,
ढेरों लोशन क्रीम की, आई ब्रांड बहार।


सर्दी को भाने लगे, सूखे मेवे दूध,
जी भर कर सब खा रहे, हरे मटर अमरूद।


तम्बू ताने शीत ने, डाला आज पड़ाव,
गाँव गाँव दिखने लगे, जलते हुए अलाव।


थर थर काँपे रात दिन,शाम नहीं दिख पाय,
शीत लहर हड़का रही, समय सिकुड़ता जाय

२३ जनवरी २०११

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