अनुभूति में
कल्पना रामानी
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ
अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें
नई रचनाओं में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई
जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम
भ्रमण पथ
दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु
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बेटी तुम
नव प्रभात की सूर्य किरण से
आलोकित घर का निखार हो
मन दर्पण की रूप माधुरी
बेटी तुम
सबका दुलार हो
सृष्टि का उत्कृष्ट सृजन हो
निर्मल कोमल सुंदर तन हो
कर्म योगिनी स्वत्व स्वामिनी
स्वजनो की
स्नेहिल पुकार हो
खिली खिली खुशरंग हिना हो
चंचल चतुर चारु-वदना हो
मृगनयनी मृदु बयन भाषिणी
जन जन
का मासूम प्यार हो
सप्त सुरों का साज वृंद हो
सुगम हास्य का मुक्त छंद हो
सुर सुबोधिनी-रसित रागिनी
मातृ-पितृ
मन का मल्हार हो
मधुबन की मोहक सुगंध हो
नवरंगों का सुमन कुंज हो
नव हरीतिमा नवल पीतिमा
ऋतु बसंत
की नव बहार हो
९ अप्रैल २०१२
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