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अनुभूति में कल्पना रामानी की रचनाएँ-

नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ

अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें

नई रचनाओं में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई

जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम

भ्रमण पथ

दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु

 

इक अनजाने शहर में

इक अनजाने शहर में, मन ही केवल मीत।
मन को अपना मानकर, एकाकीपन जीत।

कल जो छीना वक्त ने, उसे न रखिए याद
याद उसे ही कीजिये, जो पाया है आज।

कर्म है जीवन जानिए, कर्म अगर है साथ
भाग्य प्रबल कर जायंगे, सत्कर्मों के हाथ

उत्सव के दिन चार हैं, जश्न मनाएँ साथ
खुशियां होंगी दो गुणी,अगर हाथ में हाथ।

रंग रंग के फूल हैं, एक मगर उद्यान
मिलकर खुशियाँ बाँटते, यही जीव विज्ञान।

लिखने की आदत भली, कलम सदा हो साथ
जहां रहें जिस हाल में, लिख डालें जज़्बात।

३१ अक्तूबर २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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