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अनुभूति में कल्पना रामानी की रचनाएँ-

नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ

अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें

नई रचनाओं में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई

जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम

भ्रमण पथ

दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु

 

अनजन्मी बेटी

बोल उठी अनजन्मी बेटी
तुमसे मेरा नाता गहरा
माँ मेरी मैं अंश हूँ तेरा
मुझे बचा लो
वंश हूँ तेरा

कुदरत से मैंने हक पाए
मेरा दम क्यों घोंटा जाए
तुम जननी हो जीवनदाई
जग हो कंस-कसाई चाहे
मत छीनो
मुझसे हक मेरा
माँ मेरी मैं अंश हूँ तेरा

माँ तुम गाओ सुमधुर लोरी
स्वर्ण हिंडोला रेशम डोरी
निर्दय जग का करो सामना
दम ना तोड़े तेरी साधना
सूना हो
न पालना मेरा
माँ मेरी मैं अंश हूँ तेरा

माँ मैं तेरा प्रेम पुष्प हूँ
आज नई दुनियाँ दिखला दो
अमृत पय से मुझे सींचकर
आँगन की बगिया महका दो
दे दो मुझको
नया सवेरा
माँ मेरी मैं अंश हूँ तेरा

माँ गर किया विसर्जन मेरा
नहीं सुनी मेरी फरियादें
वंश लुप्त होगा मानव का
याद आएँगी फिर सब बातें
मत तोड़ो
सृष्टि का घेरा
मुझे बचा लो वंश हूँ तेरा 

९ अप्रैल २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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