अनुभूति में
कल्पना रामानी
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ
अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें
नई रचनाओं में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई
जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम
भ्रमण पथ
दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु
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जिसे पुरखों ने सौंपा था
जिसे पुरखों, ने सौंपा था, वो अपनापन कहाँ है?
जहाँ सुख बीज, रोपा था, वो घर आँगन कहाँ है?
सितारे-चाँद, सूरज आज, भी हरते, अँधेरा।
मगर मन का, हरे तम वो, दिया रौशन, कहाँ है?
वही सागर, वही नदियाँ, वही झरनों, की धारा।
करे जो कंठ तर सबके, वो जल पावन, कहाँ है?
कहाँ पायल, की वो रुनझुन, कहाँ गीतों, की गुनगुन।
कहाँ वो चूड़ियाँ खोईं, मधुर खनखन, कहाँ है?
सकल उपहार देती हैं, सभी ऋतुएँ समय पर।
फिर भी सूखी, है क्यों धरती, हरित सावन कहाँ है?
भरे भंडार, भारत के, हुए क्यों, आज खाली।
बढ़ी क्यों भूख बेकारी, गया वो धन कहाँ है?
अगर कमजोर शासन है, बताएँ कौन दोषी।
जो हल ढूँढे, सवालों का, सजग वो जन, कहाँ है?
४ फरवरी २०१३
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