अनुभूति में
कल्पना रामानी
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
खुदा से खुशी की लहर
खुशबू से महकाओ मन
ज़रा सा मुस्कुराइये
बंजर जमीं पे बाग
यादें
कुंडलिया में-
नारी अब तो उड़ चली
नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ
अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें
गीतों में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई
जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम
भ्रमण पथ
दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु
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वतन को जान हम जानें
वतन को जान हम जानें, हमारी जाँ वतन में हो।
जुड़ा है जन्म से नाता, निभाना भी जीवन में हो।
कुटिल सैय्याद बन बैठे, विधाता भव्य भारत के।
बदल दे तख्त ज़ुल्मों का, वो जज़्बा, जोश जन में हो।
करम ऐसे न हों अपने, शरम से नयन झुक जाएँ।
हया के अश्क हों बाकी, दया का भाव मन में हो।
गुलों को अगर रौंदेंगे, बनेगा बाग ही बंजर।
सदय जो हाथ सहलाएँ, सदा खुशबू चमन में हो।
बुनें ऐसे सरस नगमें, गुने दिल से जिन्हें दुनिया।
सुनाएँ गजल कुछ ऐसी, कि चर्चा अंजुमन में हो।
सजग साहित्य सेवी हों, सबल हो देश की भाषा।
लुभाए विश्व को हिन्दी, वो ताक़त अब सृजन में हो।
न लांघे शत्रु सरहद को, भले ही शीश कट जाएँ।
मिले माटी में जब तन ये, तिरंगे के कफ़न में हो।
४ फरवरी २०१३
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