अनुभूति में
कल्पना रामानी
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
खुदा से खुशी की लहर
खुशबू से महकाओ मन
ज़रा सा मुस्कुराइये
बंजर जमीं पे बाग
यादें
कुंडलिया में-
नारी अब तो उड़ चली
नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ
अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें
गीतों में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई
जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम
भ्रमण पथ
दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु
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खुदा से खुशी की लहर
खुदा से खुशी की लहर माँगती हूँ।
कि बेखौफ हर एक घर माँगती हूँ।
अँधेरों ने ही जिनसे नज़रें मिलाईं
उजालों की उनपर नज़र माँगती हूँ।
जो लाए नए रंग जीवन में सबके
वे दिन, रात, पल, हर पहर माँगती हूँ।
जो पिंजड़ों में सैय्याद, के कैद हैं, उन
परिंदों के आज़ाद, पर माँगती हूँ।
है परलोक क्या ये, नहीं जानती मैं
इसी लोक की सुख-सहर माँगती हूँ।
करे कातिलों के, क़तल काफिले जो
वो कानून होकर, निडर माँगती हूँ।
दिलों को मिलाकर, मिले जन से जाके
हरिक गाँव में, वो शहर माँगती हूँ।
बहे रस की धारा, मेरी हर गज़ल से
कुछ ऐसी कलम से, बहर माँगती हूँ।
करूँ जन की सेवा, जिऊँ जग की खातिर
हे रब! ‘कल्पना’ वो हुनर माँगती हूँ।
२३ फरवरी २०१५
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