अनुभूति में
कल्पना रामानी
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ
अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें
गीतों में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई
जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम
भ्रमण पथ
दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु
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धूप सखी
सुनो धूप सखि, विनती मेरी,
कुछ दिन जाकर शहर बिताना।
पुत्र गया धन वहाँ कमाने,
जाकर उसका तन सहलाना।
वहाँ शीत पड़ती है भारी।
कोहरा करता चौकीदारी।
तुम सूरज की परम प्रिया हो,
रख लेगा वो बात तुम्हारी।
दबे पाँव चुपचाप पहुँचकर,
उसे प्रेम से गले लगाना।
रात, नींद जब आती होगी
साँकल शीत बजाती होगी
छिपे हुए दर दीवारों पर,
बर्फ हर्फ लिख जाती होगी।
सुबह-सुबह तुम ज़रा झाँककर,
पुनः गाँव की याद दिलाना।
मैं दिन गिन-गिन जिया करूँगी।
इंतज़ार भी किया करूँगी।
अगर शीत ने मुझे सताया,
फटी रजाई सिया करूँगी।
लेकिन यदि हो कष्ट उसे तो,
सखी! साथ में लेती आना।
३ मार्च २०१४
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