अनुभूति में
कल्पना रामानी
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ
अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें
नई रचनाओं में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई
जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम
भ्रमण पथ
दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु
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कभी तो दिन वो आएगा
कभी तो दिन वो आएगा, सभी के अपने घर होंगे।
मिलेंगी रोटियाँ सबको, न सपने दर-बदर होंगे।
मिलेंगे बाग खेतों से, न होगी बीच में खाई।
पलायन गाँव छोड़ेंगे, सदय पालक शहर होंगे।
वरेंगे रोड गलियों को, जुड़ेंगे भाव भावों से।
बढ़ेंगे शुभ कदम जिस पथ, प्रगति के दर उधर होंगे।
जुड़ेगी धूप छाया से, विभाजन की मिटा रेखा।
चढ़ेंगे गाँव जब सीढ़ी, नगर भी हमसफर होंगे।
हवाएँ एक सी बहतीं, वही जल अन्न है सबका।
दिलों से दिल जुड़ेंगे स्वाद भी साझे अगर होंगे।
जलेंगे दीप घर घर में, रहेगा पर्व हर मौसम।
पपीहे मोर गाएँगे, मधुर कोकिल के स्वर होंगे।
विफल हर चाल दुश्मन की, करेंगे देश प्रेमी सब।
फ़लक पर विश्व के, दस्तखत, हमारे पुरअसर होंगे।
४ फरवरी २०१३
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