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अनुभूति में कल्पना रामानी की रचनाएँ-

नये गीतों में-
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
धूप सखी
ये सीढ़ियाँ

अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
मन पतंगों संग
वतन को जान हम जानें

नई रचनाओं में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई

जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
बेटी तुम

भ्रमण पथ

दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु

 

भ्रमण पथ

खुलीं पलकें भोर की
पग बढ़ चले लय में हमारे
हरित कुसुमित क्यारियाँ हैं
इस किनारे-
उस किनारे

अरुणिमा प्राची में छाई
धूप शबनम में नहाई।
चाँद तारे कह गए हम
जा रहे हैं दो विदाई
कान में कहती हवाएँ
नज़र कर लो
सब नज़ारे

खिलीं कलियाँ हुई आहट
तितलियों की सुगबुगाहट
पुष्प पल्लव औ लताओं
के लबों पर मुस्कुराहट
सृष्टि के साथी सभी ये
सजग स्वागत
में हमारे

भ्रमण-पथ लंबा अकेला
लिपटकर कदमों से बोला
तेज़ कर लो चाल अपनी
प्राणवायु का है रेला
हर दिशा संगीतमय है
मूक सृष्टि
के इशारे

९ अप्रैल २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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