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जूझ कर कठिनाइयों से
कर सुलह परछाइयों से
एक दीपक रातभर जलता रहा
1
लाख बारिश आँधियों ने सत्य तोड़े
वक्त ने कितने दिए पटके झिंझोड़े
रौशनी की आस पर
टूटी नहीं
आस्था की डोर भी
छूटी नहीं
आत्मा में डूब कर के
चेतना अभिभूत कर के
साधना के मंत्र को जपता रहा
एक दीपक
रातभर जलता रहा
1
जगमगाहट ने बुलाया पर न बोला
झूठ से उसने कोई भी सच न तौला
वह सितारे देख कर
खोया नहीं
दूसरों के भाग्य पर
रोया नहीं
दिन महीने साल
निर्मम
कर सतत अपना परिश्रम
विजय के इतिहास को रचता रहा
एक दीपक
रातभर जलता रहा
1
- पूर्णिमा वर्मन |
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इस माह
दीपावली के अवसर पर
गीतों में-
दोहों
में-
अंजुमन
में-
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