अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

          दीप जलता

दीप जलता, ओज बढ़ता
उजाला फलता
अँधेरों की पीठ पर
तो मूँग है दलता

हर्ष देता पवन को
अरमान को आकाश
हृदय में
हर धमनियों को दे रहा प्रकाश
कीट को जो भिनभिनाते
तेल में तलता

झोपड़ी में महल में
सबसे मुहब्बत है
दूर बिजली-निगम से
जिसको न निस्बत है
फ्यूज़ दुगुना-वॉट जो
तिल तिल नहीं गलता

धरती गले लगती गगन से
खुश हुआ तारा
पर्व ने हर शिशु की
मस्ती पे पुचकारा
पटाखों का मुँह तक यह
चूम कर चलता

ज्योति का उत्सव यहाँ पर
मौज मस्ती है
बात धन्ना की कहाँ
कल्लू की हस्ती है

वृक्ष है सद्भावना का
प्रेम से पलता

- हरिहर झा

१ नवंबर २०२०
 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter