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जलाएँ
दीप मिल सद्भाव के |
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जलाएँ
दीप मिल सद्भाव के दीपावली में सब
कलुषता का न बाकी तम धरा पर रंच रह जाए
निवालों का न हो टोटा, भरी सबकी रहे थाली
भले हो दीन कितना भी, उदर कोई न हो खाली
मिठाई मत मिले मन भर, मगर कुछ तो बताशे हों
नहीं दृष्टव्य नयनों को, क्षुधा के कटु तमाशे हों
दृगों से अब विवशतावश, न सीकर अश्रु बह जाये
कलुषता का न बाकी तम धरा पर रंच रह जाए
सिवइयाँ ईद पर खायीं, चलो अब बाँट दें खीलें
भुला दें धर्म के झगड़े, बहा सद्भाव की झीलें
दिया है काल ने असमय, अँधेरा जिन घरों में कर
सखे !अपनत्व की हिल मिल, दिलों में रोशनी दें भर
सजायें हास अधरों पर, जमी सब पीर बह जाये
कलुषता का न बाकी तम धरा पर रंच रह जाए
मृदा के दीप लायें सब, मनाएँ पर्व दीवाली
करें जो मिल सभी रोशन, अमा की रात यह काली
स्वदेशी का रहे अरमान मन में, देश का हित हो
ख़ुशी का सेतु बन जायें, नहीं मन ये कलंकित हो
भरा जो ढेर अघ मन में, समेकित आज दह जाये
कलुषता का न बाकी तम धरा पर रंच रह जाए
- अनामिका सिंह 'अना '
१ नवंबर २०२० |
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