|
|
|
भू पर जगमग दीप |
|
रंगोली आँगन सजी,
द्वारे बंदनवार।
दीवाली पर 'श्री' भरें, सब के घर- भण्डार।।
एक दीप से जल उठे, दीपक नये हजार।
सिखलाता सहयोग है, दीवाली त्योहार।।
तारे जगमग व्योम में, भू पर जगमग दीप।
दीवाली में तम नहीं, आये कहीं समीप।।
राम अयोध्या आ गये, सजे नगर सब धाम।
दीपों की लड़ियाँ सजीं, सुंदर औ अभिराम।।
दीवाली त्योहार ये, देता है संदेश।
आशा के उजियार से, हर लो मन का क्लेश।।
माटी का दीपक कहे, फीका है बाज़ार।
चाइनीज़ झालर यहाँ, बिके जा रही यार।।
मिट्टी के दीपक लिये, बैठा रहा कुम्हार।
उसके घर कब आ सका, दीपों का उजियार।।
लक्ष्मी और गणेश के, पूजन का त्योहार।
मन के मावस को मिटा, करता ये उजियार।।
रावण का संहार कर, लौटे थे श्री राम।
दीवाली त्योहार है, सत्य धर्म के नाम।।
चकरी, दीपक, फुलझड़ी, बम, रॉकेट, अनार।
बच्चों को भाता बहुत, दीवाली त्योहार।।
दीवाली की रात में, दीपों का उजियार।
दिन-सी लगती रात है, बचा नहीं अँधियार।।
माटी दीपों से करो, सज्जित सब घर- द्वार।
मने स्वदेशी ढंग से, दीवाली इस बार।।
- गरिमा सक्सेना
१ नवंबर २०२० |
|
|
|
|
|
|
|