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         दीवाली पर हुई खरीदी

दीवाली पर हुई ख़रीदी
रमुआ भी लाया है स्वेटर

झटपट उसको निपटा लेगा
जितना हिस्से काम मिलेगा
थककर रैना भर सो लेगा
खटिया पर आराम मिलेगा
पिछली होली पर लाया था
बाँधेगा माथे पर मफ़लर

हँसकर कुछ मन की कह लेगा
जो उससे करते हैं बातें
उनसे दो गज़ दूर रहेगा
दुश्मन जैसी जिनकी घातें
गाँव-खेत ही उसका जनपद
वह क्या जाने घपले-दफ़्तर

अब तक जाने कितने-कितने
उसने भी आघात सहे हैं
पीड़ा के व्यापारी आँसू
उसके निशि-दिन साथ रहे हैं
फिर भी पीठ न झुकने दी है
झंझा से जूझा है तनकर

- अश्विनी कुमार विष्णु

१ नवंबर २०२०
 

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