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         चलो कुछ दीपक बालें

लंबी हों जब तम की रातें
करें रौशनी की कुछ बातें
अनगिन दीप चलो हम बालें

क्यों दिखते हो दुखियारे से
झाँखो मन के गलियारे से
कट जायेंगे तम के बंधन
कहे उजाला अँधियारे से
कुछ खद्योत चलो हम पालें

दुश्वारी से क्या घबराना
छोड़ो खुद से रार निभाना
ढह जाती दीवारें तम की
सीख ज्ञान के दीप जलाना
आज नयी इक राह बना लें

खोल कुहासों का अब ताला
दुविधाओं को जाए टाला
बीता बरस सजी है फिर से
रंगोली और दीपक माला
मंगल गीत चलो हम गालें

त्योहारों का मौसम छाया
रौशनियों ने जश्न मनाया
घर-घर दीप जलाने जैसे
सूरज खुद धरती पर आया
फुलझड़ियाँ मिल आज जला लें

- आभा खरे

१ नवंबर २०२०
 

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