अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

     1पूर्ण दिवाली आएगी

दीप जले जग के हर घर में,जब खुशहाली आएगी
हे माँ काली उसी समय से
पूर्ण दिवाली आएगी

आज करोड़ों घर में बच्चे भूखे प्यासे सोते हैं
दिनभर मेहनत करने वाले सदा विकल हो रोते हैं
हैं लालायित नौनिहाल जब रोजगार इक पाने को
जातिवाद की भीषण ज्वाला तत्पर उन्हें जलाने को
हालत सुधरे जिसदिन माता
यह कंगाली जाएगी
हे माँ काली उसी समय से
पूर्ण दिवाली आएगी

नहीं एकता है अपने में सब आपस में लड़ते हैं
तुच्छ स्वार्थ में अन्धे होकर क्यों वेआज झगड़ते हैं
द्वेष घृणा से जकड़े सारे सभ्य मचाते शोर यहाँ
सिसक रही है अब मानवता दानवता का जोर यहाँ
रक्तहीन मुखड़े पर जिसदिन
रक्तिम लाली आएगी
हे माँ काली उसी समय से
पूर्ण दिवाली आएगी

त्रेता में रावण को मारा पूर्ण विश्व में दीप जले
आज यहाँ अनगिन रावण हैं मानवता के छाँव तले
आएँ हे प्रभु राम यहाँ फिर दुष्टों का संहार करें
त्राहि-त्राहि सर्वत्र मची है भक्तों का उद्धार करें
दैत्यों का वध करने काली
खप्परवाली आएगी
हे माँ काली उसी समय से
पूर्ण दिवाली आएगी

- बाबा बैद्यनाथ झा
१ नवंबर २०२०

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter