|
|
|
जलाओ दीप
तुम |
|
जलाओ दीप तुम
हम रोशनी के गीत गाएँगे
लड़ेंगे मिल, अँधेरों से उजाले
जीत जाएँगे
तुम्हारे बिन हमारा
इस नगर में जी नहीं लगता
कोई आवारगी का पल
सुनो हमको नहीं ठगता
तुम्हारे साथ होने से
अजब सी तृप्ति मिलती है
ये सच है मौन में भी
एक सिहरन सी मचलती है
तुम्हारे साथ चलकर दूर तक
ऐ! मीत जाएँगे
विरह की रात जायेगी
अँधेरा सकपकायेगा
विवश हो भोर का तारा
भरे मन छटपटायेगा
उगेगा सूर्य सीना तान
जग को जगमगायेगा
घरौंदे में सजग
नवजात पंछी फड़फड़ायेगा
मिले जो चार दिन जीवन के हँसते
बीत जाएँगे
चलो हम थाम कर के हाथ
मिलकर साथ चलते हैं,
भले ही देख कर हम को
मलें जो हाथ मलते हैं,
चलो संकल्प से खुद रास्ता
अपना बनाते हैं
मिली जो जिंदगी
इसको सलीके से सजाते हैं
हमारे सामने गम के समंदर
रीत जाएँगे
- डा. रामेश्वर प्रसाद सारस्वत
१ नवंबर २०२० |
|
|
|
|
|
|
|