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     1  अवनि का शृंगार कर लें

दीप की अवली बनाकर
अवनि का शृंगार कर लें
पर्व है उजियार का
शुभ-दीप सा व्यवहार कर लें

चल पड़ीं अल्हड़ हवाएँ
मूक दर्शक हैं दिशाएँ
बज उठी वीणा मधुर
हैं गूँजती पावन ऋचाएँ
इस धरा से दूर‌ नभ तक
प्रेम का विस्तार कर लें

कालिमाएँ स्याह वल्कल
ओढ़ कर बैठी हुई हैं
कलुषताएँ मन-हृदय में
बेवजह ऐंठी हुई हैं
था अभी तक तो कुहासा
ज्योतिमय संसार कर लें

कामना अज्ञानता के
भवन की चेरी रही है
लालसा भी असद के घर
दे सदा फेरी रही है
आओ हिलमिल सत्यता और
ज्ञान को गलहार कर लें

- डॉ मंजु लता श्रीवास्तव

१ नवंबर २०२०

 

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