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         1दीप जले लहर लहर

तिमिर से संघर्ष में ज्योति के उत्कर्ष में
रात के चारों पहर दीप जले लहर लहर

धरा की
अनुपम छटा, दीप दीप ले हिलोर
कोर कोर आलोकित दमक रहा छोर छोर
कौमुदी सी बिछ गयी सघन तिमिर
कतर कतर
दीप जले लहर लहर

तम सर्वत्र
पी रहा, कुटी कुटी ,भवन भवन
दीप माल दमक रही कुंज कुंज सहन सहन
प्रकाश में नहा रहा गाँव गाँव
नगर नगर
दीप जले लहर लहर

विभावरी
अमावसी चंद्रमा श्री हीन था
लाज से छुपा कहीं चाँदनी विहीन था
तब देह निज हवन कर बिखेर
दी प्रभा प्रखर
दीप जले लहर लहर

-ओमप्रकाश नौटियाल

१ नवंबर २०२०

 

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