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         एक दीपक तुम जलाओ

एक दीपक तुम जलाओ
एक दीपक हम!

ये दिये संवेदना अपनी
नहीं केवल दिये हैं
ये अमर जिजीविषा का प्रण
अटल संकल्प
सपनों के लिए हैं

एक सपना तुम सजाओ
एक सपना हम!

लोकमन पर मौन के
ताले जड़े इन साँकलों से
हम खड़े हैं, हम लड़ेंगे-
एकजुट होकर
कठिन होते पलों से

एक मादल तुम बजाओ
एक मादल हम!

यह निराशाओं जड़ी,
काली- अँधेरी रात जाए
दूर तक फिर से उन्हीं
निश्चल हँसी की
बस्तियों की बात जाए

एक सूरज तुम उगाओ
एक सूरज हम!

- शुभम् श्रीवास्तव ओम

१ नवंबर २०२०
 

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