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फागुन आ गया
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हल्दिया सुबहें हुई हैं
कुमकुमी हैं शाम
फागुन आ गया है
आ गई लेकर हवाएँ मौसमी पैगाम
फागुन आ गया है
बाँध कर फिर सप्तरंगी स्वप्न आँचल में
कर रही स्नान किरणें झील के जल में
केश खोले धूप तट पर
कर रही विश्राम
फागुन आ गया है
उड़ रहे हैं चहचहाते पंछियों के दल
प्रीति के फिर गीत मीठे गा रही कोयल
झूमता महुआ खुशी से
मुस्कुराता आम
फागुन आ गया है
कल्पनाओं ने क्षितिज के छोर हैं लाँघे
बुन रहे अनुबंध मन के रेशमी धागे
लिख रहे हैं चिट्ठियाँ
भौरें कली के नाम
फागुन आ गया है
फूलती सरसों दहकते हैं पलाशी वन
अमिलताशी गंध में खोने लगा तन -मन
रच दिये मौसम ने रंगों के
विविध आयाम
फागुन आ गया है
ढोलके संगीत फगुआ खेलती टोली
याद आई गाँव की रंगों भरी होली
लौट आये दिन वो
सुधियों की उँगलियाँ थाम
फागुन आ गया है
- मधु शुक्ला |
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इस माह
होली विशेषांक में
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
दोहों में-
अंजुमन में-
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