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   तुम अबीर हो जाओ

तुम अबीर हो बस जाओ
मेरी साँसों में
मैं फागुन हो जाऊँ

गेहूँ की गदराई बाली सा मन
लहक उठेगा
बौराई अमराई सा यह आँगन
बहक उठेगा

सिर्फ़ रंग ही रंग उचारूँ
बावरिया मैं
पुरवा बन लहराऊँ

फूलों की चौपालों में
ख़ुशबू जब नृत्य करेगी
पूरनमासी ओढ़ निशा जब
महुए सा बहकेगी

मैं पलाश भर आँचल में तब
अगर कहो तो
मिलने तुमसे आऊँ?

धरती से अम्बर तक पूरी
मौसम ने रंगोली
छींट रही है दिशा हर दिशा
शुभ प्रतीति की रोली

आज क्यों न मैं हाथ तुम्हारा
थाम, प्रेम की
झिलमिल जोत जलाऊँ

- सीमा अग्रवाल
१ मार्च २०१९

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